Search This Blog

About Me

My photo
जिंदगी गुजर गई सबको खुश करनेमें ... जो खुश हुए वो अपने नहीं थे ... जो अपने थे वो कभी खुश नहीं हुए ...

Tuesday, December 25, 2018

Good Thoughts E

साहब रिटायर होता है !

सरकारी बँगला, उसका हरा भरा लॉन, ड्राइवरों, चपरासियो के साथ बिना मांगे नमस्ते करने वालो ऑफिस के चमचों की भीड एकाएक साथ छोड जाती है !

हाँलाकि उनके जाने का दिन तो हमेशा से तय था पर साहब को ये एकाएक सा ही लगता है !

साहब हतप्रभ होता है, फिर भी  टिमटिमाता है उम्मीद का दिया ! चूँकि वो हमेशा से यह माने बैठा था कि वह बेहद ज्ञानी है !
वो  मानता था दफ़्तर चलना मुश्किल होगा उसके बिना !
लोग आयेंगे सलाह मशविरे के लिये !
मार्गदर्शन देने के लिये बैचैन साहब उम्मीद भरी आँखों से ताकता है रास्ते को l

पर अफ़सोस !
कोई नही फटकता !
दुखियारी शाम के बाद फिर से वही उदास सुबह चली आती है !

दिन बीतने लगते है !
हफ़्ते बीत ज़ाते  है !
और फिर बीतते महिनो के साथ आस बीतने लगती है !

निराशा के भँवर मे गोते खाता साहब किंकर्तव्यविमूढ हो जाता है ! बेचैन होता है ! सुबह पढ़ चुके अख़बार को दुबारा तिबारा पढ़ता है !
आस्था और संस्कार, दिव्या, चैनल के साथ डीडी चैनल भी देखता है ! चुप्पी साधे पडे मोबाईल फ़ोन को निहारता साहब घरवाली, या सिधे कहें उनकी भी बॉस, से फ़ोन ख़राब होने की शंका जाहिर करता है !

मन पक्का करके पुराने साथियों को अपनी तरफ से फ़ोन लगाता है ! और लगातार बजती घंटी को सुनकर दुखी होता है !
कॉलोनी मे, बाज़ार मे, पार्क मे, हर सन्नाटे और आबादी में किसी पहचाने चेहरे को तलाशने की बेकार कोशिश करता है ! पार्क मे टहलते वक्त किसी पुराने मातहत को कन्नी काटकर किसी दूसरी पगडंडी की तरफ  मुड़ते देखता है और भारी मन और भारी क़दमों से घर लौट आता है !

वह समझ लेता है दुनिया उसकी उम्मीद से कहीं पहले बदल गयी है ! अब कार का दरवाज़ा ख़ुद खोलना पड़ता है उसे और शॉपिंग के वक्त बिल भी ख़ुद ही चुकाना होता है ! थियेटर के लिये लगी लम्बी लाईन उसे हैरान करती है और ट्रैन मे सफ़र करते वक्त अपना बैग ख़ुद घसीटना उसे परेशान कर जाता है !

बैचैन साहब अब मिलनसार होने की कोशिश करता है !

शादी, मुंडन से लेकर तेरहवीं तक के हर न्योते की इज़्ज़त करने लगता है ! मैयतो मे पाये जाने लगता है साहब ! हर जानपहचान वाले को जन्मदिन की बधाई देने लगता है ! आदत होती नही !  इसलिये ऐसा करना अजीब लगता है साहब को ! जाहिर है साहब की बेचैनी और ज़्यादा बढ़ती ही है !

दुनिया को बदलते देख मन ख़राब होता है साहब का ! वो पाता है उसके सामने याचक बने रहने वाले रिश्तेदार अचानक निष्ठुर हो उठे हैं, उसका दिया सारा उधार डूब गया है और अब किराने वाला भी चाहता है कि वो अपना पूरा बिल नगद चुकाये !
कुछेक साहब ऐसे मे अध्यात्म की दुनिया मे घुसने की कोशिश करते है ! पर ध्यान मे अचानक पुराना ऑफिस घुस आता है !

विनम्रता से दोहरे होते ठेकेदार चले आते है मन मे ! धार्मिक होने की नाकाम कोशिश करता साहब जल्दी ही इस निष्कर्ष पर जा पहुँचता है कि वह ग़लत जगह चला आया है !
हैरान परेशान रिटायर साहब बाल डाई करना भूलने लगता है ! तेज़ी से बूढ़ा होता है ! चिड़चिड़ाहट लौट आती है उसकी ! हताश साहब घर मे साहबी करने की कोशिश करता है और मुँह की खाता है !

अनमना बेटा कन्नी काटता है ! नाती पोते दूर भागते है, बीबी उसे नाक़ाबिले बर्दाश्त घोषित कर देती है और बडे जतन से पाला पोसा गया कुत्ता तक उसे देख पँलग के नीचे घुस जाता है !
ऐसे ही कुढ़ता है वो !
नाशुक्री दुनिया को गरियाता है ! दुखी बना रहता है और आस पास वालो को दुखी करता है !
रिटायर साहब और कर भी क्या सकता है ? जब तक जीता है साहब ! यही करता है !

अतः समय रहते सुधार आवश्यक है।

साहबी छोड़ीये  मानवीयता आपनाइये ।

दोस्त बनाइये,
अपनों को समय दीजिये
और दूसरों के काम आईये ।

साहबी पकड़े रहे,
तो जिंदगी छूट जाएगीl

-----

Be a good lawyer

Look carefully at the facts
See the obvious
Wisdom Beyond Logic

A young man in his mid-twenties knocks on the door of a renowned Litigation Lawyer.He says: “I’ve come to you because I wish to become a great litigation lawyer.

“Do you know law" the Senior Lawyer asks.

“Yes"replies the young man.

"Are you an avid reader" asks the Senior Lawyer

“No. But don’t worry. I just finished my dissertation at Christ University on Legal Thought and Reasoning.So now, I would just like to round out my education with a little experience on the practice of law.

“I doubt,” the Senior Lawyer says, “that you are ready to enter litigation. It is the deepest knowledge ever known. If you wish, however, I am willing to examine you in logic, and if you pass that test I will teach you Litigation Law.

The young man agrees.

Senior Lawyer holds up two fingers. “Two men come down a chimney. One comes out with a clean face; the other comes out with a dirty face. Which one washes his face?”

The young man stares “Is that really a test in logic?”

The Senior Lawyer nods.

”The one with the dirty face washes his face“- he answers confidently.

“Wrong. The one with the clean face washes his face. Examine the logic. The one with the dirty face looks at the one with the clean face and thinks his face is clean. The one with the clean face looks at the one with the dirty face and thinks his face is dirty. So, the one with the clean face washes his face.”

“Very clever,” the young man says. “Give me another test.”

The Senior Lawyer again holds up two fingers. “Two men come down a chimney. One comes out with a clean face, the other comes out with a dirty face. Which one washes his face?”

“We have already established that. The one with the clean face washes his face.”

“Wrong. Each one washes his face. Examine the logic. The one with the dirty face looks at the one with the clean face and thinks his face is clean. The one with the clean face looks at the one with the dirty face and thinks his face is dirty. So, the one with the clean face washes his face. When the one with the dirty face sees the one with the clean face wash his face, he also washes his face. So, each one washes his face.”

“I didn’t think of that,” says the young man. It’s shocking to me that I could make an error in logic. Test me again.”

The Senior Lawyer holds up two fingers. “Two men come down a chimney. One comes out with a clean face; the other comes out with a dirty face. Which one washes his face?”

“Each one washes his face.”

“Wrong. Neither one washes his face. Examine the logic. The one with the dirty face looks at the one with the clean face and thinks his face is clean. The one with the clean face looks at the one with the dirty face and thinks his face is dirty. But when the one with the clean face sees the one with the dirty face doesn’t wash his face, he also doesn’t wash his face. So, neither one washes his face.”

The young man is desperate. “I am qualified to learn litigation law. Please give me one more test.”

He groans, though, when the Senior Lawyer lifts two fingers. “Two men come down a chimney. One comes out with a clean face; the other comes out with a dirty face. Which one washes his face?”

“Neither one washes his face.”

“Wrong. Do you now see why logic is an insufficient basis for studying Litigation Law. Tell me, how is it possible for two men to come down the same chimney, and for one to come out with a clean face and the other with a dirty face? Don’t you see? The whole question is nonsense, foolishness, and if you spend your whole life trying to answer foolish questions, all your answers will be foolish, too.”

Get your facts in place
Law will follow!

-----

आहिस्ता  चल  जिंदगी,अभी
कई  कर्ज  चुकाना  बाकी  है
कुछ  दर्द  मिटाना   बाकी  है
कुछ   फर्ज निभाना  बाकी है
                   रफ़्तार  में तेरे  चलने से
                   कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
                   रूठों को मनाना बाकी है
                   रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
                    कुछ हसरतें अभी  अधूरी हैं
                    कुछ काम भी और जरूरी हैं
                    जीवन की उलझ  पहेली को
                    पूरा  सुलझाना  बाकी     है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह   बात   बताना  बाकी  है
                     आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
                     कई कर्ज चुकाना बाकी    है
                     कुछ दर्द मिटाना   बाकी   है 
                     कुछ  फर्ज निभाना बाकी  है

-----

डोक्याला ताण करून घ्यायचा नाही 

उगीच गळा काढून
बोम्बलायचं नाही
अन डोक्याला ताण करून
घ्यायचा नाही

कामाच्या वेळेस
खूप काम करायचं!
कष्ट करतांना
झोकून द्यायचं!
पण Life कसं मजेत जगायचं! .......

फिरा वाटलं फिरायचं
लोळा वाटलं लोळायचं
सुनंला काय वाटंल ?
पोट्टे काय म्हणतेल ?
फारसा विचार करायचा नाही
अन डोक्याला ताण करून
घ्यायचा नाही ..........!!

पार्टी करा वाटायली
पार्टी करायची
आरती करा वाटायली
आरती करायची

Picture पहुसा वाटतो ?
Picture पहायचा
समोसा खाउ वाटतो ?
समोसा खायचा

B. P. वाढंल का ?
अन शुगर कमी होईल का ?
मला जर ऍटॅक आला
तर दवाखान्यात कुणी नेईल का ?

अरे.......,
लोकं कुत्र्या , मांजराला सुद्धा उचलून नेतेत
तू तर माणूस आहेस ,
मग , नको ती चिंता करतो कशाला ?
स्वतःही परेशान व्हायचं नाही
अन दुसर्यालाही " जाळूजाळू घ्यायचं नाही "
अन डोक्याला अजिबात
ताण करून घ्यायचा नाही ....!!!

लाकडं बाभळीची आणतील
का चंदनात जाळतील ?
खालून-वरून रॉकेल टाकतील
का एखादा किलो तरी
चांगलं तूप टाकतील ?
सगळी पोरं येतील का ?
मला खांदा देतील का ?
फालतू गोष्टीची काळजी
करायची नाही
अन डोक्याला ताण करून
घ्यायचा नाही .......!!!

पोट्ट्याचं लग्न होईल का ?
त्याला कुणी पोरगी देईल का ?
नातवाला English medium मधे टाकायचं
का Semi English मधीच ठेवायचं ?

अरे तुला काय करायचं ?
जाउंदे ना  ! थोडं जग नं !!
नको त्या गोष्टीचा
कशाला ताण करून घेतो ?
स्वतःही उगीच जागतो
अन दुसऱ्यालाही जागवतो

बगलतलं काढून बाजारात
मांडायचं नाही
अन डोक्याला ताण करून
घ्यायचा नाही ......!!!!

लग्न झाल्यावर पोट्टं
विचारील का नाही ?
सुनेला पुरणाची पोळी
येईल का नाही ?

कुळाचार करंल का ?
सवाष्ण जेवू घालील का ?
शेती ठेवतील का विकतील ?
माझं श्राद्ध-पक्ष करतील का ?

आहेत का नाही हे फालतू प्रश्न ?

अरे बाबा ,
" मल्हार " गा वाटतो
मल्हार गा ...
मक्याचं कणीस खाउ वाटतं
मक्याचं कणीस खा

सिनेमा आवडतो ?
कुठल्याही सिनेमाला जा की !
कार्यक्रम पहायचाय ?
मग पहायचाच !
दिंडीत जाऊ वाटतं
पंढरपूरला जायचं
गाऱ्हाणे करायची नाहीत
अन डोक्याला ताण करून
घ्यायचा नाही .......!!!!!

सगळ्याचं सगळं करायचं
पण कमरेचा पंचा काढून
द्यायचा नाही
अन उगीच डोक्याला
ताण करून घ्यायचा नाही !!!!

-----

मला भेटलेली एक सुंदर स्त्री!

एका संध्याकाळी सगळी कामं  आटोपुन मंदिराबाहेरील एका आडबाजुच्या बाकड्यावर बसलो होतो, अंधार पडत चालला होता, वर्दळही फारशी नव्हती.  घरी जायच्या आधी कोणाचे काही कॉल्स, व्हॉट्स अप बघावं म्हणुन मोबाईल काढला.... बघतो तो हँग झालेला... बापरे बरेच महत्त्वाचे कॉल्स आता कसे  करायचे? मोबाईल चालु करण्याचा खटाटोप चालु झाला... वैताग आला... मोबाईल काही सुरु होईना ....

काय करावं या विचारांच्या  तंद्रीत असतांनाच खांद्यावर कुणीतरी हात ठेवला आणि घोगर्या आवाजात कुणीतरी विचारलं, कोण हाय ...? मी तंद्रीतुन जागा होत एकदम दचकलो आणि वर पाहिलं तर बघुन भिती वाटावी अशा विचित्र चेहऱ्याची एक बाई शेजारी उभी....

आधी घाबरलो पण नंतर चिडुन विचारलं , काय बाई हि काय पद्धत आहे का ? दिसतंय का नाही तुला ? फटकन येवुन अशी अंगावर हात ठेवतेस ... घाबरलो ना मी...!

तशी म्हणाली, आवो मला दिसत नाय, हितंच मी भायेर भीक मागती, या टायमाला मी हितंच बसुन भाकर खाती... मापी करा, मी जाती दुसरीकडं ... मी ओशाळलो, म्हटलं, नाही बाई बसा इथंच , मी चाललोच आहे...

तिला बघुन अंगातला डॉक्टर जागा झाला, म्हणालो डोळे कशानं गेले? म्हणाली, लहानपणी डोळ्यातनं पाणी येत व्हतं लइ दुकायचे डोळे, आयबापानं गावातल्या भगताला दाखवलं, त्यांनं कायतरी औशद सोडलं डोळ्यात , मरणाची आग झाली, नंतर डाक्टर म्हणला कसलंतरी  शीड व्हतं ते, डोळं आतुन जळल्यात , तवापासुन दिसणंच बंद झालं, 17 वर्साची व्हते मी तवा....

अरेरे ! तुमच्या आईबापाच्या  आणि भगताच्या चुकीमुळं डोळे गेले तुमचे , आधीच ते डॉक्टरांकडे गेले असते तर हि वेळ नसती आली... बेअक्कल असतात लोकं... मी सहज बोलुन गेलो. यावर मला वाटलं माझ्याच सुरात सुर मिसळुन ती आता त्यांना शिव्या शाप देईल, पण नाही, ती म्हणाली, नाय वो कुनाच्या आयबापाला वाटंल आपल्या तरण्या पोरीचं डोळं जावं म्हणुन ? बिचाऱ्यानी त्यांना जे जमलं ते केलं... खेड्यात कुटनं आनायचा डाक्टर ? आणी आला तरी त्याला पैसं कुटनं दिलं आस्त ? माजं डोळं गेल्यावर डोकं आपटुन आपटुन माजा बाप गेला ...त्या बिचाऱ्याची काय चुक व्हती? माज्या आईनं, एकाद्या लहान बाळावानी माजं सगळं केलं... डोळं आसताना जेवडी माया नाय केली त्याच्या पेक्षा जास्त माया तीनं डोळं गेल्यावर केली.. मी चांगली आसते तर येवडी फुलावानी जपली आसती का मला ? डोळं गेल्याचा आसाबी फायदा आसतुया ... हसत म्हणाली...

वाईटातुन सुद्धा किती चांगलं शोधण्याचा प्रयत्न करत होती हि बाई ?

तरी मी म्हणालो, मग भगताचं काय ... ? त्यांनं तर चुकीचं औषध सोडलं ना ?

म्हणाली, आसं कसं म्हणता सायेब, माजं डोळं काय मुद्दाम घालवलं का त्यानं ? आवो मला ते औशद लागु न्हाई झालं  त्याला त्यो तरी काय करणार ? आवो माजं डोळं जाणारंच होतं, त्याला त्यो निमित्त झाला फक्त ... माज्या नशीबाचे भोग हुते ते ... त्या बिचाऱ्याचा दोष न्हाई... कुणी काही चांगलं करायला गेलं आन चुकुन वाईट झालं तर त्याला दोष देवु नाई... !
डाक्टर सुई टोचतो, पण बरं वाटावं म्हणुनच ना? त्याचा दुखवायचा इचार नसतो त्यात... आपुन आसं समजुन घेतलं तर कुणाचा राग कशाला येईल...?
Intention is important behind every action या वाक्याचा सार या बाईने किती सहज सांगीतला ...!!!

पण आज्जी इतकी वर्षे तुम्ही काहिही न बघता कशा राहु शकला?

म्हणाली, न बघता? काय बघायचं राहिलंय ... आवो सगळं बगुन मनात साटवलंय .... वासराला दुध पाजताना गाईचं डोळं म्या पाहिलेत, सगळा भात माज्या ताटात टाकुन उपाशी हासत झोपणारी आई म्या पाह्यलीय,  पिल्लाच्या चोचीत घास भरवणारी चिमणी म्या बगीतली, कुत्र्याच्या पिल्लाला दुध पाजणारी शेळी म्या बगीतली, फुटलेल्या छपरातनं आत येणारं चांदणं म्या बगीतलंय, मातीतनं उगवणारा कोंब म्या पाह्यलाय .... तुमी काय बगीतलं ह्यातलं ...? आवो ह्ये सगळं बगुन झाल्यावर राह्यलंच काय बगायला ?

तीच्या प्रश्नाला उत्तर नव्हतं माझ्याकडे !

आज्जी तुमचं लग्न ....? चाचरत मी विचारलं... आज्जी म्हणाली, झालं हुतं की,  त्यो बी आंदळा हुता, त्यानंच आणलं पुण्याला मला .... पदरात एक पोरगी टाकली, त्याच्या पुण्याईनं पोरगी आंदळी नव्हती ... म्हणलं चला चांगलं दिवस आलं ... पन त्योबी दोन वर्षातच गेला...... बरं झालं बिचारा त्यो तरी सुटला.... !

आणि आज्जी तुमची पोरगी ? ती कुठाय ? आज्जी भकास हसली,म्हणाली, तीच्या विसाव्या वर्षी ती गेली तीच्या बापामागं त्याला शोधायला ... आता दोगं वरनं माजी मजा बगत आसतील .... स्वर्गात म्हणं नाचगाणी चालत्यात रोज, पन आमच्या आंदळ्याच्या नशीबात ते बी न्हाई मेल्यावर सुदा..... असं म्हणुन आज्जी हसायला लागली...

पण मी सुन्न झालो, काय बोलावं हेच कळेना.... इतकं सगळं भोगुनही हि इतकी निर्विकार !

आज्जी, या सगळ्यात दोष कुणाचा ?

कुणाचाच न्हाई, परत्येकानं आपापलं काम केलं, ज्याचा त्याचा मोबदला ज्याला त्याला मिळाला... आपल्या वाट्याला आलं ते घ्यायचं, का आन कसं ते इचारायचं न्हाइ... भाकर मिळाली तर म्हणायचं आज आपली दिवाळी, ज्या दिवशी मिळणार न्हाई म्हणायचं, चला आज उपास करु....
दोष कुनाला द्यायचा न्हाई... वाईटात बी चांगलं शोधलं तर माणसाला वाईट वाटायचं काहि कारणच नाही...

ते कसं आज्जी मला नाही समजलं ...

ह्ये बगा सायेब, एकाद्याचा हात जरी तुटला तरी त्यानं म्हणावं, एकच हात तुटलाय , दुसरा तरी हाय चांगला, दोनी हात गेलं तरी म्हणावं पाय तरी हायेत माजे आजुन... आता माजं बगा, दोनी डोळं गेलं तरी  बोलता येतंय ना मला ???

काय बोलावं मलाच कळेना, या विद्रुप चेहऱ्यामागे किती विद्वत्ता दडली होती ? वयामुळं हा पोक्तपणा आला असेल कि, भोगलेल्या सर्व यातनांमुळे मनाला आलेला हा बधीरपणा असेल ?

काहिही असो एव्हढ्या सुंदर विचाराची, वाईटातुन चांगलंच शोधण्याचा प्रयत्न करणारी, वरवर विचित्र दिसणारी आजी तेव्हा मला जगातली सर्वात सुंदर स्त्री भासली !!!

-----

No comments:

Post a Comment